मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाते हुए कहा कि अनुदान प्राप्त निजी स्कूल किसी भी शिक्षक को सरकार की अनुमति के बिना नौकरी से नहीं हटा सकते। यह फैसला माहेश्वरी हायर सेकंडरी स्कूल द्वारा दायर अपील को निरस्त करते हुए सुनाया गया, जिससे शिक्षकों के अधिकारों की रक्षा को मजबूती मिली है।
क्या है पूरा मामला?
माहेश्वरी हायर सेकंडरी स्कूल के जीवविज्ञान संकाय के शिक्षक एस.के. व्यास को वर्ष 2005 में स्कूल ने अचानक यह कहते हुए नौकरी से हटा दिया कि कक्षा 11वीं और 12वीं में जीवविज्ञान संकाय में कोई एडमिशन नहीं हुआ है, इसलिए उनकी आवश्यकता नहीं रही।
व्यास, जो 1974 में उच्च श्रेणी शिक्षक के रूप में नियुक्त हुए थे और 1991 में लेक्चरर के पद पर पदोन्नत हुए थे, ने इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। 2007 में कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाते हुए फिर से नियुक्त करने का आदेश दिया, लेकिन स्कूल प्रबंधन ने इसे स्वीकार नहीं किया और पुनः अपील कर दी।
हाईकोर्ट का सख्त रुख
न्यायमूर्ति विवेक रूसिया और गजेंद्रसिंह की युगलपीठ ने सुनवाई के बाद स्कूल की अपील को पूरी तरह से खारिज कर दिया और साफ कहा कि शिक्षक को हटाने से पहले शासन की अनुमति अनिवार्य है।
फैसले के प्रभाव
- यह आदेश अनुदान प्राप्त स्कूलों के शिक्षकों के लिए एक महत्वपूर्ण जीत साबित होगा।
- स्कूल प्रबंधन अब बिना सरकारी मंजूरी के किसी शिक्षक को मनमाने ढंग से नौकरी से नहीं निकाल सकेगा।
- यह फैसला अन्य शिक्षकों के लिए भी संरक्षण की मिसाल बनेगा।
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