मनावर : (सिंघम रिपोर्टर) परम पूज्य आचार्य गुरुवर 108 विराग सागर जी महाराज की आज्ञानुवर्ती शिष्या परम पूज्य आर्यिका 105 विदुषी श्री माताजी ससंघ का मंगल चातुर्मास मनावर में चल रहा है।
इस दौरान आर्यिका विदुषी श्री माताजी ने कहा “साधन से नहीं साधना से ही मुक्ति मिल सकती है” संयम का प्रतीक है पिच्छिका और पिच्छिका साधु के संयम का उपकरण है
इसके पांच गुण होते हैं साधु हमेशा अपने पास पिच्छिका रखते हैं जो संयम में सहायक होती है। पिच्छिका संयम में परिवर्तन का बोध कराती है। जिस प्रकार पिच्छिका का परिवर्तन हो रहा है इस प्रकार संसार भी परिवर्तनशील है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में मोक्ष मार्ग पर चलने के लिए जीवन में परिवर्तन लाना चाहिए।
दिगंबर साधु की पहचान मोर पंख की पिच्छिका है। यह इतनी मुलायम होती है कि इससे किसी भी जीव की हानि नहीं होती है संत की पिच्छिका प्राप्त होना सौभाग्य की बात है दीक्षा के समय आचार्य, आर्यिका इस संयम के उपकरण रूप पिच्छिका को जीव दया पालन हेतु शिष्यों को देते हैं जो
संयम का प्रतीक है। आर्यिका संघ को नई पिच्छिका देने और पुरानी पिच्छिका लेने के लिए संयम को धारण करना पड़ता है। इसीलिए समाज जनों में संयम एवं त्याग की भावना को धारण करने के लिए आर्यिका माताजी संघ द्वारा फार्म के माध्यम से अपने जीवन में सभी श्रावकों एवं श्राविकाओं को कुछ न कुछ त्याग करवाया जा रहा है।
आर्यिका श्री ने कहा कि अभी तक करीबन 60 से 70 लोगों ने त्याग एवं संयम के फॉर्म को भर दिया है करीबन 250 से 300 फॉर्म भरना है। फार्म के माध्यम से जो भी सबसे ज्यादा संयम एवं त्याग के कालम को पूर्ण करेगा एवं अपने जीवन में संयम एवं त्याग का पालन करेगा उसे ही पिच्छिका भेंट करने एवं पुरानी पिच्छिका प्राप्त करने का लाभ प्राप्त होगा।
इस अवसर पर चातुर्मास समिति एवं दि. जैन समाज के अध्यक्ष अभय सोगानी ने कहा कि आर्यिका माताजी ससंघ की पिच्छिका परिवर्तन आगामी दिनों में संपन्न होगा जो भक्ति और उत्साह से विशाल जन समूह के बीच मनाया जाएगा जो ज्ञान और भक्ति के रसों से परिपूर्ण होगा।









