“सम्राट विक्रमादित्य अंतरराष्ट्रीय सम्मान”: मध्य प्रदेश सरकार का ऐतिहासिक कदम, 1 करोड़ से अधिक की पुरस्कार राशि

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मध्य प्रदेश सरकार ने भारतीय संस्कृति और मूल्यों को वैश्विक पहचान दिलाने की दिशा में एक नई पहल करते हुए “सम्राट विक्रमादित्य अंतरराष्ट्रीय सम्मान” की शुरुआत की है। यह सम्मान ऐसे अंतरराष्ट्रीय हस्तियों को दिया जाएगा जिन्होंने अपने कार्यों और जीवन मूल्यों के जरिए सम्राट विक्रमादित्य के आदर्शों को जीवंत किया हो।

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुमति लेकर इस योजना को मूर्त रूप दिया है। यह पुरस्कार हर वर्ष उज्जैन के ऐतिहासिक सम्राट विक्रमादित्य के नाम पर प्रदान किया जाएगा, जिसकी पुरस्कार राशि 1 करोड़ रुपये से अधिक होगी।

यह सम्मान भारत का पहला ऐसा अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार होगा, जो संस्कृति, विज्ञान, न्याय और जनकल्याण जैसे विषयों में योगदान देने वाले व्यक्तियों को समर्पित है। इससे पहले ‘सम्राट विक्रमादित्य राष्ट्रीय सम्मान’ की राशि 21 लाख रुपये थी, जबकि क्षेत्रीय स्तर पर 5-5 लाख रुपये के तीन सम्मान घोषित किए गए थे।

हालांकि पात्र व्यक्तियों का चयन समय पर नहीं होने से वे सम्मान रोक दिए गए थे, लेकिन अब अंतरराष्ट्रीय स्तर की इस योजना के साथ मध्य प्रदेश सरकार एक नई दिशा में आगे बढ़ रही है। यह पहल भारत के सांस्कृतिक नेतृत्व को वैश्विक स्तर पर स्थापित करने की ओर एक बड़ा कदम मानी जा रही है।

महाराजा विक्रमादित्य शोधपीठ के निदेशक श्रीराम तिवारी ने कहा कि यह अंतरराष्ट्रीय सम्मान भारतीय मूल्यों, ज्ञान और संस्कृति को वैश्विक मंच पर सम्मान दिलाने वाला साबित होगा।

सम्राट विक्रमादित्य: भारतीय परंपरा के महान प्रतीक

उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य को न्यायप्रिय, विद्वान संरक्षक और भारत के गौरवशाली इतिहास के संवाहक के रूप में जाना जाता है। उन्होंने विक्रम संवत की शुरुआत की और भारतीय समय प्रणाली को स्थायित्व प्रदान किया। कला, विज्ञान, राजनीति और धर्म के क्षेत्र में उनका योगदान अद्वितीय रहा है।

ऐसा भी माना जाता है कि उन्होंने ही अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण करवाया था। उनका शासन रामराज्य के बाद भारत के आदर्श शासन का प्रतीक माना जाता है।

विक्रम अलंकरण से वैश्विक सम्मान तक का सफर

अब तक राज्य सरकार ‘विक्रम अलंकरण’ के माध्यम से उन प्रतिभाओं को सम्मानित करती रही है, जो सम्राट विक्रमादित्य के दरबार के प्रसिद्ध ‘नवरत्नों’ जैसी योग्यता रखते हों। ये नवरत्न थे– कालिदास, धन्वंतरि, वराहमिहिर, अमरसिंह, शंकु, वररुचि, क्षपणक, बेतालभट्ट और घटकर्पर।

अब यह सम्मान सीमाएं लांघकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत की सांस्कृतिक शक्ति को स्थापित करेगा।

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