मध्य प्रदेश में वकीलों का ‘अधिवक्ता संशोधन विधेयक’ के खिलाफ आंदोलन: ‘काला कानून’ करार

👇समाचार सुनने के लिए यहां क्लिक करें

मध्य प्रदेश के वकील ‘अधिवक्ता संशोधन विधेयक, 2025’ के खिलाफ एकजुट होकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह विधेयक अधिवक्ताओं और उनके संघों की स्वतंत्रता और स्वायत्तता के विरुद्ध है। वकीलों का आरोप है कि यह विधेयक उनके अधिकारों का हनन करता है और वकालत के पेशे की गरिमा को ठेस पहुंचाता है।

विधेयक के विवादास्पद प्रावधान:

विदेशी अधिवक्ताओं का प्रवेश: विधेयक में प्रावधान है कि विदेशी अधिवक्ता और फर्म भारत में कानूनी प्रैक्टिस कर सकेंगे, जिससे स्थानीय वकीलों को प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा।

नौकरीपेशा विधि स्नातकों को अनुमति: कॉर्पोरेट सेक्टर में कार्यरत विधि स्नातकों को भी अदालत में पैरवी की अनुमति देने का प्रस्ताव है, जो पारंपरिक वकीलों के लिए चुनौती बन सकता है।सरकारी सदस्यों की नियुक्ति: बार काउंसिल ऑफ इंडिया और राज्य अधिवक्ता परिषद में निर्वाचित सदस्यों के अलावा तीन सरकारी सदस्यों की नियुक्ति का प्रावधान है, जिससे स्वायत्तता पर सवाल उठते हैं।

सेवा में कमी पर शिकायतें: अधिवक्ताओं के खिलाफ उपभोक्ता आयोग में सेवा में कमी को लेकर शिकायत दर्ज करने की अनुमति दी गई है, जिससे वकीलों पर अतिरिक्त दबाव बढ़ सकता है।कार्य से विरत रहने पर प्रतिबंध: विधेयक में वकीलों के हड़ताल या कार्य से विरत रहने पर प्रतिबंध का प्रस्ताव है, जिससे उनके विरोध के अधिकार सीमित हो सकते हैं।

अभद्र व्यवहार पर सजा: न्यायालय में अभद्र व्यवहार करने पर वकीलों पर जुर्माना और उनकी सनद निलंबित करने का प्रावधान है, जो उनके पेशेवर जीवन पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है।वकीलों का कहना है कि यह विधेयक वकालत के पेशे की स्वतंत्रता और गरिमा के खिलाफ है और इसे तत्काल वापस लिया जाना चाहिए। उन्होंने राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपकर अपनी आपत्तियां दर्ज कराई हैं और आगे की रणनीति के लिए 23 फरवरी को बैठक आयोजित की है।

और पढ़ें