पाँच साल पहले जिन क्षेत्रों में टिड्डियों का आक्रमण हुआ था, अब वहां वैज्ञानिक अध्ययन कर रहे हैं। यह अध्ययन मुख्य रूप से टिड्डियों के संभावित हमले से पहले अलर्ट जारी करने और उसके प्रभावी उपायों की जानकारी देने के लिए किया जा रहा है। यूनिवर्सिटी ऑफ कोलकाता के वैज्ञानिकों की एक टीम ने ग्वालियर और आसपास के क्षेत्रों में अध्ययन शुरू किया है।
इस टीम द्वारा पाकिस्तान और ईरान से आने वाली टिड्डियों के आक्रमण का अध्ययन किया जा रहा है ताकि भविष्य में इनसे होने वाले संभावित नुकसान को समय रहते नियंत्रित किया जा सके। टीम इस समय ग्वालियर पहुंच चुकी है और यहां की मिट्टी, मौसम, फसलों, और रिहायशी क्षेत्रों का विश्लेषण कर रही है। इसके बाद यह टीम यूपी, पंजाब और राजस्थान जैसे अन्य राज्यों में भी अध्ययन करेगी।
इस अध्ययन का उद्देश्य टिड्डियों के द्वारा संभावित हमले के मार्ग का अनुमान लगाकर समय रहते अलर्ट जारी करना है। इस अध्ययन को भारतीय सरकार के साइंस एंड इंजीनियरिंग रिसर्च बोर्ड (एसईआरबी) द्वारा वित्तपोषित किया जा रहा है। यूनिवर्सिटी ऑफ कोलकाता के असिस्टेंट प्रोफेसर एसके मफिजुल हक के अनुसार, टिड्डियों के हमले की संभावना इस साल फिर से जताई जा रही है, और टीम मार्च तक अपना अध्ययन पूरा कर लेगी।
सामान्यत: टिड्डियां मानसून के दौरान भारत में आकर ब्रीड करती हैं और अक्टूबर तक वापस लौट जाती हैं। लेकिन 2019 में लंबे मानसून के कारण टिड्डियों का असर राजस्थान, गुजरात और पंजाब में जनवरी तक देखा गया था। टिड्डियां फसलों के लिए बड़ी समस्याएं उत्पन्न करती हैं, क्योंकि इनका मुख्य आहार कोमल पत्तियां होती हैं। एक वर्ग किलोमीटर में चार से आठ करोड़ तक वयस्क टिड्डियां हो सकती हैं, जो एक दिन में पूरे क्षेत्र की फसल को नष्ट कर सकती हैं।
