खरगोन के गर्ल्स हॉस्टल में धर्मांतरण की कोशिश: वार्डन ने बाइबल पढ़ने को किया मजबूर, बीईओ ने लिया एक्शन

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खरगोन जिले के भीकनगांव कस्बे से 12 किलोमीटर दूर स्थित अजजा बालिका छात्रावास छिरवा में एक गंभीर मामला सामने आया है, जहां कक्षा चौथी और पांचवीं की लगभग 15 बालिकाओं ने हॉस्टल छोड़कर अपने परिवारों के पास पहुंचकर वार्डन पर शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना के आरोप लगाए। बालिकाओं का कहना है कि उन्हें धार्मिक गतिविधियां, विशेषकर बाइबल पढ़ने और प्रार्थना करने के लिए मजबूर किया जाता था, जो उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रही थीं। इसके साथ ही वार्डन पर यह भी आरोप लगे हैं कि उन्होंने बच्चों से बर्तन धुलवाने, गेहूं साफ करने जैसे शारीरिक काम भी करवाए थे।

बालिकाओं के गंभीर आरोप:
बालिकाओं ने अपने बयान में कहा कि वार्डन, रीता खरते, उन्हें रात में बाइबल पढ़ने के लिए बाध्य करती थीं। इसके साथ ही, धार्मिक प्रार्थना करने के लिए भी उन पर दबाव डाला जाता था। इसके अलावा, बच्चों से बर्तन धुलवाना, गेहूं साफ करने और अन्य शारीरिक श्रम कराना भी उनके लिए मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना का कारण बना। इस मानसिक दबाव और शारीरिक शोषण को सहन न कर पाने के कारण बालिकाओं ने हॉस्टल छोड़ने का निर्णय लिया।

प्रशासन की प्रतिक्रिया:
बालिकाओं की शिकायत के बाद खंड शिक्षा अधिकारी (BEO) दिनेश चंद्र पटेल ने घटना की गंभीरता को देखते हुए छात्रावास का दौरा किया और जांच शुरू की। जांच के दौरान धार्मिक किताबों और कापियों को जब्त किया गया। बालिकाओं के परिवारों ने निष्पक्ष जांच की मांग की है, ताकि दोषियों को कड़ी सजा मिल सके। इसके बाद, प्रशासन ने वार्डन रीता खरते को उनके पद से हटा दिया और उनकी जगह संगीता यादव को नियुक्त किया है।

पूर्व में भी हुआ है ऐसा:
यह पहली बार नहीं है जब इस तरह के मामले सामने आए हैं। इससे पहले पश्चिम सिंहभूम जिले के खूंटपानी कस्तूरबा आवासीय विद्यालय की 60 से 70 छात्राएं भी वार्डन की प्रताड़ना से परेशान होकर अहले सुबह उपायुक्त से मिलने के लिए समाहरणालय परिसर पहुंच गई थीं। इस घटना ने भी यह साबित किया कि देशभर में ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जहां छात्राओं को शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है और उन्हें धर्म परिवर्तन की कोशिशें की जाती हैं।

समाज और प्रशासन की जिम्मेदारी
यह घटना इस बात की ओर इशारा करती है कि शिक्षा संस्थानों में बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा बेहद जरूरी है। बच्चों को शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना से बचाने के लिए सख्त नियमों और निगरानी की आवश्यकता है। इसके अलावा, छात्रों को अपनी धार्मिक मान्यताओं का पालन करने या न करने का पूरा अधिकार होना चाहिए।

परिवारों की भूमिका और अधिकार:
बालिकाओं के परिवारों ने प्रशासन से निष्पक्ष और गहन जांच की मांग की है। यह घटना यह भी दर्शाती है कि बच्चों के परिवारों को उनके अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए। परिवारों का यह कर्तव्य है कि वे बच्चों के खिलाफ किसी भी प्रकार के उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाएं।यह मामला एक उदाहरण है, जो दिखाता है कि बच्चों को उनके व्यक्तिगत अधिकारों और स्वतंत्रता का सम्मान मिलना चाहिए। प्रशासन और समाज को मिलकर ऐसे मामलों पर ध्यान देने की जरूरत है, ताकि बच्चों को ऐसे माहौल में शिक्षा मिल सके, जिसमें उनके मानसिक और शारीरिक विकास की पूरी सुरक्षा हो।

Pooja upadhyay
Author: Pooja upadhyay

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