मध्य प्रदेश में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों में दोषियों के बचने की दर लगातार बढ़ती जा रही है। हाल ही में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, गंभीर महिला अपराधों के मामलों में 75 प्रतिशत से अधिक आरोपी अदालतों से बरी हो रहे हैं, जिससे महिलाओं को न्याय मिलने में गंभीर समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। इस स्थिति के पीछे प्रमुख कारणों में साक्ष्य संकलन में कमजोरी, विवेचना में देरी और पीड़िताओं पर दबाव डालकर उनका बयान बदलवाना शामिल हैं।
साक्ष्य संकलन की समस्याएं और विवेचना में देरी
गृह विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023 में 7048 महिला अपराधों के मामलों में से केवल 21 प्रतिशत में ही दोषियों को सजा हुई। इनमें से 5571 मामले में आरोपी बरी हो गए। साक्ष्य संकलन में कमजोरी, विशेष रूप से फोरेंसिक टीम की कमी, और जांच प्रक्रिया में देरी इस समस्या का मुख्य कारण हैं। प्रदेश के विभिन्न लैब्स में चार हजार से अधिक डीएनए सैंपलों की जांच अटकी पड़ी है, जिससे न्याय में अत्यधिक देरी हो रही है।
विवेचना अधिकारियों की कमी और साक्ष्य की कमी
मध्य प्रदेश में पुलिस बल की भारी कमी है और विवेचना अधिकारियों की संख्या भी अपर्याप्त है। प्रदेश में हर साल करीब पांच लाख अपराध होते हैं, जिनमें से 30 हजार से अधिक महिलाओं के खिलाफ होते हैं। इन मामलों की जांच के लिए पर्याप्त विवेचना अधिकारियों की आवश्यकता है, लेकिन पुलिस बल की कमी इसे चुनौतीपूर्ण बना देती है।
साक्ष्य की कमी भी एक बड़ी समस्या बनकर उभर रही है। वरिष्ठ वकील अजय गुप्ता के अनुसार, 80 प्रतिशत मामलों में सजा नहीं मिल पाती, क्योंकि पुलिस आवश्यक साक्ष्य जुटाने में असफल रहती है। यह समस्या केवल महिलाओं के मामलों तक सीमित नहीं है, बल्कि समग्र न्याय प्रणाली के लिए भी एक गंभीर चुनौती बन चुकी है।इस परिदृश्य में सरकार और पुलिस को गंभीर कदम उठाने की आवश्यकता है, ताकि पीड़िताओं को समय पर न्याय मिल सके और दोषियों को कड़ी सजा दी जा सके।