भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और “आर्थिक सुधारों के जनक” डॉ. मनमोहन सिंह का 92 वर्ष की उम्र में गुरुवार रात निधन हो गया। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उनके सम्मान में पूरे देश में सात दिन के राष्ट्रीय शोक की घोषणा की है। इस दौरान राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहेगा, और किसी भी आधिकारिक मनोरंजन कार्यक्रम का आयोजन नहीं होगा। उनका अंतिम संस्कार राजकीय सम्मान के साथ किया जाएगा।
1991 का आर्थिक संकट और नई दिशा
डॉ. मनमोहन सिंह ने 1991 में वित्त मंत्री के रूप में कार्यभार संभालते ही देश को एक गहरे आर्थिक संकट से उबारा। उस समय भारत का राजकोषीय घाटा जीडीपी का 8.5% था और विदेशी मुद्रा भंडार केवल दो सप्ताह के आयात के लिए पर्याप्त था। उनके साहसिक कदमों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दी।
आर्थिक सुधारों का मार्ग प्रशस्त
1991-92 के केंद्रीय बजट के जरिए उन्होंने देश को उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण की ओर अग्रसर किया।
– लाइसेंस राज का अंत किया।
– प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को प्रोत्साहन दिया।
– रुपये का अवमूल्यन कर विदेशी व्यापार को संतुलित किया।
– सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के निजीकरण की नींव रखी।
प्रधानमंत्री के रूप में उल्लेखनीय योगदान
2004 से 2014 तक प्रधानमंत्री रहे डॉ. सिंह ने कई ऐतिहासिक नीतियों और कल्याणकारी योजनाओं को लागू किया:
– *मनरेगा:* ग्रामीण रोजगार को प्रोत्साहन।
– *आधार योजना:* डिजिटल पहचान प्रणाली की शुरुआत।
– *शिक्षा का अधिकार (RTE):* हर बच्चे के लिए शिक्षा का मौलिक अधिकार।
उनके नेतृत्व में 2007 में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 9% तक पहुंच गई, जिससे भारत दुनिया की सबसे तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हुआ।
भारतीय अर्थव्यवस्था का कर्णधार
डॉ. सिंह ने अपने दूरदर्शी नेतृत्व से भारतीय अर्थव्यवस्था को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उनकी नीतियां और योगदान सदैव प्रेरणा के स्रोत रहेंगे। उनका निधन भारत के लिए अपूरणीय क्षति है।
