निमाड़ क्षेत्र के प्रसिद्ध संत सियाराम बाबा का बुधवार सुबह 6:10 बजे निधन हो गया। वे लंबे समय से अस्वस्थ थे। शाम 4 बजे खरगोन जिले के भट्यान घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा, जिसमें मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव सहित कई गणमान्य व्यक्ति शामिल होंगे।
आध्यात्मिक जीवन की शुरुआत
सियाराम बाबा का जन्म 1933 में गुजरात के भावनगर में हुआ था। 17 वर्ष की आयु में उन्होंने सांसारिक जीवन त्यागकर आध्यात्मिक मार्ग अपनाया। उन्होंने अपने गुरु के सान्निध्य में शिक्षा ग्रहण की और विभिन्न तीर्थ स्थलों की यात्रा की। 1962 में वे नर्मदा नदी के तट पर स्थित भट्यान आए और एक पेड़ के नीचे मौन तपस्या में लीन हो गए। उनकी साधना पूरी होने के बाद उन्होंने पहली बार “सियाराम” का उच्चारण किया। तभी से वे सियाराम बाबा के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
हनुमान जी के अनन्य भक्त
सियाराम बाबा हनुमान जी के अनन्य भक्त थे। वे नर्मदा नदी के तट पर स्थित भट्यान आश्रम में रहते थे और प्रतिदिन रामचरितमानस का पाठ करते थे। कहा जाता है कि स्कूली शिक्षा के दौरान ही वे एक संत के संपर्क में आए और घर छोड़कर हिमालय की ओर तपस्या के लिए चले गए।
सादगी और सेवा का प्रतीक
सियाराम बाबा सादगी और समाज सेवा के प्रतीक माने जाते थे। वे दान में केवल 10 रुपये ही स्वीकार करते थे। अपने जीवनकाल में उन्होंने समाज कल्याण के कई कार्य किए। नर्मदा नदी के घाटों की मरम्मत के लिए उन्होंने 2 करोड़ 57 लाख रुपये का दान दिया था। उनकी शिक्षाओं और सेवा भावना ने उन्हें श्रद्धालुओं के बीच अमिट स्थान दिलाया।
श्रद्धांजलि
उनके निधन की खबर से क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई है। सियाराम बाबा की आध्यात्मिक शिक्षा और समाज के प्रति उनका योगदान सदैव याद रखा जाएगा। उनके अनुयायियों और भक्तों के लिए यह एक अपूरणीय क्षति है।