सुप्रीम कोर्ट ने गरीबों को मुफ्त राशन देने की व्यवस्था पर सवाल उठाते हुए सरकार को रोजगार सृजन और श्रमिकों की क्षमता निर्माण पर ध्यान देने की सलाह दी है। कोर्ट ने कहा कि कब तक गरीबों को मुफ्त चीजें दी जाएंगी? इसके बजाय, रोजगार के अवसर पैदा करने और श्रमिकों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम करना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट यह टिप्पणी राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत प्रवासी मजदूरों को फ्री राशन की व्यवस्था पर सुनवाई के दौरान कर रहा था। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस मनमोहन की बेंच ने कहा कि केवल मुफ्त राशन देना समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। हमें इन मजदूरों के लिए रोजगार के अवसरों और क्षमता निर्माण पर फोकस करना चाहिए।सुनवाई के दौरान वकील प्रशांत भूषण ने एक एनजीओ की ओर से पैरवी करते हुए कहा कि ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत सभी प्रवासी मजदूरों को मुफ्त राशन दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि राशन कार्ड न होने के कारण कई प्रवासी श्रमिक मुफ्त राशन का लाभ नहीं उठा पा रहे हैं। प्रशांत भूषण ने अदालत से सभी प्रवासी मजदूरों को मुफ्त राशन देने के लिए निर्देश जारी करने की मांग की।
केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 के तहत 81 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन उपलब्ध कराया जा रहा है। इस पर कोर्ट ने कहा कि यह योजना जरूरी है, लेकिन हमें सोचना होगा कि मुफ्त राशन कब तक दिया जा सकता है। सरकार को रोजगार सृजन और श्रमिकों की क्षमता विकास पर जोर देना चाहिए।वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को प्रवासी मजदूरों को राशन कार्ड जारी करने का निर्देश दिया था। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि कोई मजदूर ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत है और उसके पास राशन कार्ड नहीं है, तो भी उसे मुफ्त राशन उपलब्ध कराया जाए।इस सुनवाई ने गरीबों की जरूरतों और रोजगार की आवश्यकता के बीच संतुलन की ओर ध्यान आकर्षित किया है। सुप्रीम कोर्ट का यह रुख सरकार को केवल मुफ्त सुविधाएं देने तक सीमित रहने के बजाय स्थायी समाधान की दिशा में प्रेरित करता है।