रतलाम की चाय संस्कृति का एक सुनहरा अध्याय समाप्त: “रतन दादा की चाय” का आखिरी दिन

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रतलाम, जो अपने स्वाद और परंपराओं के लिए मशहूर है, वहां **”रतन दादा की चाय”** सिर्फ एक दुकान नहीं, बल्कि अपनापन और प्यार से भरी हुई एक विरासत थी। चांदनी चौक की इस चाय की दुकान ने **लगातार 60 वर्षों तक एक जैसा स्वाद** बरकरार रखा, और अब जब दादा ने इसे अलविदा कह दिया है, तो यह सिर्फ एक दुकान बंद होने की बात नहीं, बल्कि रतलाम की संस्कृति के एक युग के अंत जैसा है।


60 वर्षों की सेवा—हमेशा एक जैसा स्वाद और मुस्कान**

**रतन दादा** की चाय की खासियत सिर्फ उसका स्वाद नहीं था, बल्कि उनके व्यवहार, मुस्कान और सेवा का जज्बा भी था। उनके चेहरे पर हमेशा एक प्यारी मुस्कान होती थी, जो हर ग्राहक को अपनापन महसूस कराती थी। दुकान पर चाहे कोई बड़ा हो या छोटा, आम हो या खास—**हर किसी के साथ उनका व्यवहार एक जैसा** होता था।

सादा जीवन, उच्च विचार—हमेशा सफेद कपड़ों में**
रतन दादा की पहचान उनकी **सफेद ड्रेस** थी। इतने सालों में शायद ही किसी ने उन्हें किसी और रंग के कपड़ों में देखा हो। सफेद कपड़े उनके सरल और ईमानदार स्वभाव के प्रतीक थे। उनकी दुकान की तरह उनका व्यक्तित्व भी साफ-सुथरा और बिना किसी बनावट के था।

कभी विवाद नहीं, सिर्फ सेवा और स्वाद
इतने सालों तक लगातार दुकान चलाने के बावजूद, पूरे क्षेत्र में **किसी से कभी कोई विवाद नहीं हुआ**। यह उनकी विनम्रता और सभी से समान व्यवहार का ही नतीजा था। वे सिर्फ चाय बेचने वाले नहीं थे, बल्कि अपने ग्राहकों के बीच एक सम्मानित और प्रिय व्यक्ति थे।

सम्पन्न परिवार से होने के बावजूद सेवा का जुनून- रतन दादा एक संपन्न परिवार से थे। उन्हें चाय की दुकान चलाने की कोई मजबूरी नहीं थी। लेकिन जब उनके इस काम के पीछे का कारण जाना गया, तो पता चला कि **उन्हें आम आदमी को स्वादिष्ट और जायकेदार चाय पिलाने का शौक था**। उनके लिए यह सिर्फ एक व्यवसाय नहीं, बल्कि सेवा थी।

लाभ से ज्यादा सेवा—मुफ्त में भी चाय
रतन दादा का मकसद केवल लाभ कमाना नहीं था। **दिनभर में वे कई लोगों को मुफ्त में भी चाय पिला देते थे।** खासकर वे लोग जो आर्थिक रूप से कमजोर थे या जो सिर्फ चाय पीने की इच्छा लेकर आते थे लेकिन देने के लिए पैसे नहीं होते थे। उनके लिए दादा की दुकान एक आश्रय जैसी थी, जहां बिना किसी झिझक के चाय मिल जाती थी।

*चाय प्रेमियों के लिए नई तलाश
अब जब रतन दादा ने अपनी **कप-प्लेट वाली दुकान** को अलविदा कह दिया है, तो रतलाम के चाय प्रेमियों को उस प्यार और मनुहार से भरी चाय के लिए कोई नया ठिकाना तलाशना पड़ेगा। हालांकि, दादा जैसी आत्मीयता और प्रेम शायद ही कहीं और मिले।


सम्मान और विदाई का भावुक पल

कल इस खास अवसर पर **मयंक जाट मित्र मंडल और घास बाजार के दोस्तों** ने रतन दादा का **शानदार अभिनंदन** किया। उनकी वर्षों की सेवा के प्रति आभार जताया गया और उन्हें सम्मानपूर्वक विदाई दी गई। यह सिर्फ एक दुकान बंद होने की बात नहीं थी, बल्कि **रतलाम की एक अमूल्य धरोहर के अंत** का भावुक क्षण था।

रतन दादा की चाय सिर्फ एक स्वाद नहीं, बल्कि **प्रेम, अपनापन और सेवा की मिठास** थी, जो हमेशा शहरवासियों के दिलों में बसी रहेगी।

SinghamTimes
Author: SinghamTimes

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