सैलाना विधायक कमलेश्वर डोडियार और सिविल अस्पताल के डा.सी.पी.एस. राठौर के बीच हुए विवाद ने यहां आंदोलन का रुप ले लिया और यह विवाद एक तरह से संग्राम रूपी युद्ध में बदल गया। और युद्ध के योद्धा बन गए कलेक्टर रतलाम और सैलाना क्षेत्र के विधायक
पिछले दो-तीन दिन से रतलाम जिले ही नहीं अपितु प्रदेश भर की जनता, जनप्रतिनिधियों एव प्रशासनिक उच्च अधिकारियों की निगाहें रतलाम पर टिकी हुई थी कि इस युद्ध का परिणाम क्या होगा। इस राजनैतिक एवं प्रशासनिक द्वन्द में प्रशासन की तरफ से गंभीर, शांत,प्रिय एवं कुशल नेतृत्व के धनी कलेक्टर राजेश बाथम अपनी सुझबूझ एवं सजगता से कदम-कदम पर स्टेप लेते जा रहे थे। वहीं दूसरी तरफ सैलाना क्षेत्र के विधायक कमलेश्वर डोडियार जो आदिवासी नेतृत्व के नए नेता रुप से उभरे है, वे अपनी जुझारूपन से अपने अधिकार का उपयोग करते हुए शासन-प्रशासन पर दबाव बना कर अपनी जीत को हासल करने का प्रयास कर रहे थे। पूरे सप्ताह चले इस एपीसोड में कौन कहा सही रहा ,किसने किसकों पलटी खिलायी और किसकों अपने मुंह की खाना पड़ी, पढिय़े विभिन्न बिंदुओं के माध्यम से सिंघम टाइम्स की यह निष्पक्ष खबर।
डाक्टर से हुए विवाद तक विधायक सही लग रहे थे ………..सिविल अस्पताल में अपने साथी के साथ पहुंचे विधायक के साथ डाक्टर का बर्ताव का विडियो वायरल हुआ और डाक्टर ने अभद्रता की, ओर डॉक्टर के प्रति मेसेज गलत गया ।हालांकि डाक्टर को भी ऐसा करने के लिए उत्तेजित किया गया, फिर भी एक विधायक के साथ गाली बकने का विडियों डा.राठौर के लिए गले की फांस बन गया ।
एसें में प्रकरण दर्ज हुआ, प्रकरण में सही मायने में एट्रोसीटी एक्ट की धारा का एक तरफ से दुरूपयोग है और वह भी एक विधायक जो न केवल आदिवासी वर्ग का नेतृत्वकर्ता ही नहीं बल्कि वह सामान्य वर्ग समेत सबका नेता है, ऐसे उच्च पद पर आसीन व्यक्ति इन धाराओं का हथियार के रुप में कैसे उपयोग करे इस पर विचार करना होगा ?
वहीं डाक्टर राठौर द्वारा एक विधायक के खिलाफ शासकीय कार्य में बांधा की धारा का उपयोग करना बैमानी होगी, क्योंकि विधायक अस्पताल नहीं पहुंचेगा और व्यवस्था नहीं देखेगा यह संभव नहीं है।
विधायक का ‘बाप वाला विडियो कपापि ठीक नहीं ………इधर सैलाना विधायक डोडियार ने अपनी आंदोलन की रणनीति बनाना शुरू कर दी और वे सही ट्रेक पर चल रहे थे किन्तु इसी बीच उन्होंने कलेक्टर को चेतावनी भरा विडियो वायरल कर दिया जिसमें बोला कि ”कलेक्टर के बाप का राज नहीं है… और जिला कलेक्टर से नहीं कानून के राज से चलेगा । इस प्रकार की अससंदीय भाषा से जिला एवं पुलिस प्रशासन के भोपाल तक के उच्च अधिकारियों को रास नहीं आया। जितना बड़ा आदमी होता है उसकी भाषा उतनी अच्छी होना चाहिए किन्तु आज के नेताओं में हिरों बनने की होड़ में सब कुछ जायज मानकर सस्ती लोकप्रियता अर्जित की जाती है। यह विधायक को महंगी पड़ गई।
शासन-प्रशासन अपनी वाली पर आ जाता है……..शासन-प्रशासन में बैठे लोग भी अनुभवी, योग्य और कूशल होते है किंतु जहां अराजकता का माहौल और कानून अपने हाथ में लेने जैसा माहौल दिखने लगे तो वे अपनी सख्त कार्यवाही के बल पर कार्य करते है और यहां भी ऐसा ही हुआ। कलेक्टर ,एस.पी. ने पूरी सावधानी, सजगता के साथ विधायक को गिरफ्तार कर लिया, जिससे डोडियार को महा आंदोलन में एकत्रित हुए आदिवासियों के बड़े समूह को अपनी बात कहने और प्रदर्शन करने से वंचित होना पड़ा।
कांग्रेस व अन्य किसी का साथ नहीं……..आदिवासी विधायक के साथ इतना बड़ा बखेड़ा हुआ किंतु कांग्रेस पार्टी और उनके नेताओं की कोई प्रतिक्रया अथवा निंदा सामने नहीं आई, बल्कि सैलाना के पूर्व विधायक हर्षविजय गेहलोत तो खुश हुए होंगे कि ऐसे पंगे चलते रहने चाहिए, जिससे सैलाना विधानसभा की जनता उन्हें पुन: याद कर सके। दूसरी तरफ सत्ताधारी दल के आदिवासी जनप्रतिनिधियों ने भी विधायक डोडियार की निंदा की ना कोई विरोध दर्ज कराया। हां मजेदार बात यह है कि इनके साथी जयस के नेता ओर विधायक के चुनाव में पराजित हुए एक डाक्टर आदिवासी नेता को मजे आ गए, क्योंकि वे भी अपनी घमण्डी प्रवृति और ओछी राजनीति के चलते जेल की हवा खा चुके थे। प्रशासनिक अधिकारियों ने उनसे बातचीत एवं पूछ परख करके उनका महत्व थोड़ा बड़ा दिया है।विधायक सैलाना की आज जमानत कार्यवाही संभव है। आज 13 दिसंबर को सरकार के साथ विधायक का भी एक साल का कार्यकाल पूरा हो चुका है। इसी प्रकार के झगड़े, विवाद एवं धरना प्रदर्शन में यदि उनका समय जाता रहा तो आने वाला उनका राजनीतिक ग्राफ कहां पहुंचेगा, विचारणीय है।