मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (MPPCB) की 2023-24 की रिपोर्ट ने राज्य की नदियों की बदहाल स्थिति पर रोशनी डाली है। रिपोर्ट के अनुसार, प्रदेश की 89 नदियों में से 60 धार्मिक स्थलों के पास का पानी इतना अधिक प्रदूषित हो चुका है कि यह आचमन, स्नान या हाथ धोने लायक भी नहीं रह गया।
293 स्थानों पर हुई जल जांच: चिंताजनक आंकड़े
राज्यभर में 293 स्थानों पर पानी का परीक्षण किया गया, जिसमें से सिर्फ 197 स्थानों का पानी पीने योग्य (ए-कैटेगरी) पाया गया। शेष 96 स्थानों का पानी या तो स्नान योग्य नहीं था या गंभीर रूप से दूषित था।
धार्मिक स्थलों के पास नदियों की दयनीय स्थिति
क्षिप्रा, नर्मदा और बेतवा जैसी पवित्र नदियों के धार्मिक स्थलों के आसपास का पानी इतना अधिक प्रदूषित है कि इसे उपयोग करना खतरनाक है। इंदौर की कान्ह नदी को सबसे प्रदूषित घोषित किया गया। देवास की छोटी कालीसिंध नदी तो पूरी तरह सूख चुकी है, जिससे उसकी जांच भी संभव नहीं हो सकी।
पानी की गुणवत्ता: पांच श्रेणियों में वर्गीकरण
– *ए-कैटेगरी*: रोगाणु मुक्त और सीधे पीने योग्य।
– *बी-कैटेगरी*: बैक्टीरिया युक्त, केवल धुलाई-सफाई के लिए उपयुक्त।
– *सी-कैटेगरी*: भारी धातु और अन्य प्रदूषकों से प्रभावित।
– *डी-कैटेगरी*: अत्यधिक प्रदूषित काला पानी।
– *ई-कैटेगरी*: जहरीले औद्योगिक कचरे से गंभीर रूप से दूषित।
प्रमुख नदियों की स्थिति:
– *कान्ह नदी* (इंदौर): रामवासा क्षेत्र में पानी डी-कैटेगरी में, खाटीपुरा और धानखेड़ी में ई-कैटेगरी का पाया गया।
– *क्षिप्रा नदी* (उज्जैन): रामघाट से सिद्धवट तक पानी डी-कैटेगरी का है।
– *नर्मदा नदी* (अमरकंटक): उद्गम स्थल पर बी-कैटेगरी, बुदनी क्षेत्र में स्थिति खराब।
– *चंबल नदी* (राजगढ़): पानी डी-कैटेगरी का।
– *बेतवा नदी* (भोजपुर): चरणतीर्थ और भोजपुर मंदिर के पास पानी बी-कैटेगरी का है।
छोटी नदियां और अधूरी योजनाएं
32 छोटी नदियों के पुनर्जीवन की योजना फाइलों में ही अटकी हुई है। स्वच्छ भारत मिशन के तहत 110 नगरीय निकायों को प्रदूषण रोकने के निर्देश दिए गए थे, लेकिन अब तक केवल 2-10% काम ही पूरा हुआ है।
विशेषज्ञों का सुझाव और भविष्य की राह
विशेषज्ञों के अनुसार, प्रदूषण को रोकने के लिए तत्काल जल पुनर्चक्रण और उपचार संयंत्र की स्थापना जरूरी है। धार्मिक स्थलों के पास जनजागरूकता अभियान चलाना और उद्योगों द्वारा फैलाए गए प्रदूषण पर कड़ी कार्रवाई अनिवार्य है।
मध्य प्रदेश की नदियां, जो कभी जीवनदायिनी और सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक मानी जाती थीं, अब प्रदूषण और लापरवाही के कारण संकट में हैं। राज्य सरकार और समाज को मिलकर इन जीवनदायिनी जलधाराओं को बचाने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे।