दिल्ली में प्रदूषण के स्तर ने हाल ही में एक नई चिंता को जन्म दिया है, जिसमें सड़क किनारे चलने वाले पैदल यात्रियों के लिए खतरा बढ़ गया है। अहमदाबाद की भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला और दिल्ली तकनीकी विश्वविद्यालय के एक संयुक्त अध्ययन के मुताबिक, दिल्ली के व्यस्त इलाकों में नैनोपार्टिकल्स (PM1 कण) की अत्यधिक सांद्रता पाई गई है, जो फेफड़ों के लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकती है। यह अध्ययन खासतौर पर दिल्ली के सड़क किनारे रहने वाले लोगों के लिए एक चेतावनी है, क्योंकि इन क्षेत्रों में यह कण 30% अधिक मात्रा में पाए जाते हैं।
नैनोपार्टिकल्स का असर
रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली में पैदल चलने वाले लोग रोजाना औसतन 10 से 18 मिलियन नैनोपार्टिकल्स के संपर्क में आते हैं। ये कण, जो मानव बाल से 500 गुना छोटे होते हैं, आसानी से फेफड़ों में घुस सकते हैं और खून में मिलकर शरीर के अन्य अंगों तक पहुंच सकते हैं, जिनमें मस्तिष्क भी शामिल है। इस शोध के दौरान, यह पाया गया कि सड़क किनारे की हवा, शहरी वातावरण की तुलना में 30% अधिक प्रदूषित होती है। इन सूक्ष्म कणों का अधिकतम जमाव फेफड़ों के गहरे हिस्सों में होता है, जो श्वसन तंत्र के लिए खतरनाक हो सकता है।
स्वास्थ्य पर असर
सड़क किनारे रहने वाले लोग, जैसे ट्रैफिक पुलिस, रेहड़ी-पटरी वाले, डिलीवरी कर्मी और मोटरसाइकिल सवार, इन कणों के सबसे अधिक खतरे में होते हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस प्रदूषण से बचने के लिए नैनोपार्टिकल उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए सख्त नीतियां बनाने की आवश्यकता है। इसके अलावा, यह शोध इस बात का भी संकेत देता है कि शहरी क्षेत्रों में प्रदूषण नियंत्रण उपायों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए ताकि आम जनता को इससे बचाया जा सके।
इस अध्ययन से यह साफ है कि दिल्ली में प्रदूषण के खतरे को कम करने के लिए तत्काल कदम उठाने की आवश्यकता है। नैनोपार्टिकल्स के उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए इंजन उत्सर्जन नीतियों को सख्त करने की सिफारिश की गई है, जिससे सड़क किनारे रहने और काम करने वाले लोगों को सुरक्षित रखा जा सके। दिल्ली की हवा को साफ और सुरक्षित बनाना हम सभी की जिम्मेदारी है, और इसके लिए सरकार और जनता दोनों को मिलकर प्रयास करने होंगे।