सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: चेक बाउंस के मामले में अब जेल से मिलेगी राहत
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने चेक बाउंस से संबंधित मामलों में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि कोई व्यक्ति चेक बाउंस के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद शिकायतकर्ता के साथ आपसी समझौता कर लेता है, तो उसे जेल की सजा से बचाया जा सकता है।
जस्टिस अरविंद कुमार और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 138 के तहत चेक बाउंस का मामला मुख्य रूप से सिविल प्रकृति का है, जिसे विशेष रूप से आपराधिक श्रेणी में शामिल किया गया है। यह एक निजी विवाद है, जिसे चेक की विश्वसनीयता को बढ़ाने के लिए आपराधिक क्षेत्र में लाया गया। एक बार जब दोनों पक्ष समझौता पत्र पर हस्ताक्षर कर लेते हैं और शिकायतकर्ता बकाया राशि का पूर्ण निपटान स्वीकार कर लेता है, तो धारा 138 के तहत दोषसिद्धि को बनाए रखना उचित नहीं है।
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के फैसले को पलटा
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के उस आदेश को रद्द करता है, जिसमें दोनों पक्षों के बीच समझौता होने के बावजूद चेक बाउंस के मामले में सजा को रद्द करने से इनकार किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब दोनों पक्ष स्वेच्छा से समझौते पर सहमत हो जाते हैं, तो ऐसी कार्यवाही को जारी रखने का कोई औचित्य नहीं रहता।
समझौते को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता
खंडपीठ ने अपने फैसले में यह भी कहा कि पक्षकार समझौता इसलिए करते हैं ताकि वे लंबी और जटिल कानूनी प्रक्रिया से बच सकें। अदालतें ऐसे समझौतों को अनदेखा नहीं कर सकतीं। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट की धारा 147 के तहत चेक बाउंस के मामलों को समझौता योग्य अपराध माना गया है, भले ही आपराधिक प्रक्रिया संहिता, 1973 के प्रावधान इसके विपरीत हों। यह समझौता मुकदमे के किसी भी चरण में हो सकता है, बशर्ते दोनों पक्ष स्वेच्छा से सहमति दें।
लाखों मामले लंबित, छोटे व्यापारियों को राहत
यह फैसला छोटे व्यापारियों और व्यक्तियों के लिए विशेष रूप से लाभकारी साबित होगा। दिसंबर 2024 तक देशभर में चेक बाउंस के 43 लाख से अधिक मामले लंबित थे। इनमें राजस्थान सबसे आगे है, जहां 6.4 लाख से ज्यादा मामले लंबित हैं। इसके बाद महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल का स्थान है। यह निर्णय इन मामलों के निपटारे में तेजी लाने और पक्षकारों को राहत प्रदान करने में मदद करेगा।