ग्रामीण भारत में कैंसर का खतरा बढ़ा, कई क्षेत्रों में स्थिति शहरों से भी बदतर

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ग्रामीण भारत में कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं और कई इलाकों में यह समस्या शहरी क्षेत्रों से भी अधिक गंभीर हो चुकी है।

जामा नेटवर्क ओपन में प्रकाशित एक विस्तृत अध्ययन में 2012 से 2019 के बीच दर्ज 7.08 लाख से अधिक नए कैंसर मामलों और 2.06 लाख मौतों का विश्लेषण किया गया। अध्ययन के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति एक लाख लोगों में औसतन 93 पुरुष और 84 महिलाएं कैंसर से पीड़ित हैं। खास बात यह है कि कुल मामलों में 54% महिलाएं थीं, और मरीजों की औसत उम्र 56 वर्ष थी।

यह अध्ययन भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री कार्यक्रम के तहत 43 कैंसर रजिस्ट्रियों में से 21 ऐसे क्षेत्रों पर केंद्रित था, जहां ग्रामीण आबादी 50% या उससे अधिक है। इन क्षेत्रों में क्रूड इंसीडेंस रेट (सीआईआर), यानी प्रति एक लाख लोगों में नए मामलों की संख्या, पुरुषों में 93 और महिलाओं में 84 पाई गई। हालांकि, ये आंकड़े पूरे ग्रामीण भारत का प्रतिनिधित्व नहीं करते, बल्कि केवल उन क्षेत्रों का औसत दर्शाते हैं जहां रजिस्ट्री कवरेज उपलब्ध है।

सीआईआर एक सरल मापदंड है जो किसी क्षेत्र में कैंसर के बोझ को समझने में मदद करता है। उदाहरण के लिए, यदि 10 लाख की आबादी वाले क्षेत्र में एक वर्ष में 1,000 नए मामले सामने आते हैं, तो सीआईआर 100 होगा। अध्ययन में पता चला कि दक्षिण भारत और पूर्वोत्तर राज्यों के कई जिले सबसे गंभीर स्थिति में हैं। केरल के पथानामथिट्टा जिले में, जहां 89% आबादी ग्रामीण है, पुरुषों में सीआईआर 260.9 और महिलाओं में 209.4 दर्ज किया गया, जो कई शहरी क्षेत्रों से भी अधिक है। अलप्पुझा, कोल्लम और तिरुवनंतपुरम जैसे जिले भी उच्च दरों वाले क्षेत्रों में शामिल हैं। पूर्वोत्तर में, मेघालय के ईस्ट खासी हिल्स में पुरुषों का सीआईआर 139.5 और महिलाओं का 84.6 है, जबकि असम के काछार जिले (81.8% ग्रामीण आबादी) में पुरुषों का सीआईआर 106.6 और महिलाओं का 96.5 है। उत्तर भारत में, वाराणसी (62.5% ग्रामीण आबादी) में पुरुषों का सीआईआर 98.4 और महिलाओं का 89.3 दर्ज किया गया।

ग्रामीण भारत में कैंसर के बढ़ते मामलों ने स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने और जागरूकता बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित किया है।

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